रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे तुम से बिछड़ेंगे अगर तो दर-ब-दर हो जाएँगे ज़िंदगानी के सफ़र में लुत्फ़ होगा तब नसीब हम-ख़याल-ओ-हम-नवा जब हम-सफ़र हो जाएँगे आसमानों का सफ़र हम तय करेंगे एक रोज़ जब हमारे हौसलों में बाल-ओ-पर हो जाएँगे सादगी यूँही अगर लादे रहे तो एक दिन सब तुम्हारे अपने तुम से बे-ख़बर हो जाएँगे देखना जिस दिन उन्हें मक़्सद समझ में आएगा मंज़िलों की जुस्तुजू में रहगुज़र हो जाएँगे पौदे हैं उर्दू अदब के आब-ओ-दाना डालिए आने वाले कल में साए और समर हो जाएँगे साक़ी साग़र की ज़रूरत ही कहाँ मेरे लिए तेरी आँखों के ही प्याले पुर-असर हो जाएँगे वो न जाएँगे कभी 'महताब' ज़ुल्मत की तरफ़ वक़्त पर अंजाम से वाक़िफ़ अगर हो जाएँगे