रुख़्सत हुई बहार नज़ारे चले गए दामन तिरा छिना कि सहारे चले गए आया न लब पे हर्फ़-ए-शिकायत भी भूल के जैसे भी अपनी गुज़री गुज़ारे चले गए सब कुछ लुटाया फिर भी तुझे पा सके न हम बाज़ी हर एक गाम पे हारे चले गए सीने में सोज़ आँख में आँसू लिए हुए महफ़िल से तेरी दर्द के मारे चले गए हँस हँस के हम ने ज़ुल्म सहे हैं तिरे लिए मर मर के भी तुझी को पुकारे चले गए मौजों से ऐ 'तबस्सुम' अभी और खेल ले कश्ती से तेरी दूर किनारे चले गए