रुख़-ए-रौशन को बे-नक़ाब न कर दिल की दुनिया में इंक़लाब न कर आइना रख न सामने उस के हुस्न ख़ुद-बीं को ला-जवाब न कर चार-सू जल्वा-गर तू ही तू है आइना-ख़ाना में हिजाब न कर मेरे नग़्मों में कैफ़-ए-ग़म भर दे मुझ को मिन्नत-कश-ए-रबाब न कर मेरी अख़्तर-शुमारियाँ मत पूछ अपने वा'दों का कुछ हिसाब न कर बख़्त-दाज़ों को रो रहा हूँ मैं ग़म-ज़दा पर फ़लक अज़ाब न कर राह-ए-पुर-ख़ार है अभी दर-पेश आबलों का अभी हिसाब न कर 'शौक़' है तेरा मुंतज़िर कब से अब तो सूरत दिखा हिजाब न कर