रूठ जाने की आदतें न गईं दिल जलाने की आदतें न गईं ज़ख़्म खा कर भी तुझ से नाम तिरा गुनगुनाने की आदतें न गईं प्यार से जो भी मिल गया उस को दुख सुनाने की आदतें न गईं चाँद की शर्म से नक़ाबों में मुँह छुपाने की आदतें न गईं दो दिलों को उजाड़ के हँसना न ज़माने की आदतें न गईं चाँद जैसा हर इक हसीं चेहरा दिल को भाने की आदतें न गईं बीसियों बार आज़मा के हमें आज़माने की आदतें न गईं रात के पिछले पहर ऐ 'अय्याज़' घर को आने की आदतें न गईं