साँस दर साँस राएगानी में कट गई उम्र बे-धियानी में हुजरा-ए-ज़ात में चराग़ जला राह-नुमाई थी राह-ए-फ़ानी में मैं सुनाती थी दास्तान-ए-तरब दर्द हँसता रहा कहानी में हैं ज़मान-ओ-मकान हिजरत में आलम-ए-हू की ला-मकानी में कोई सूरत सँभल नहीं पाई वक़्त की बे-कराँ रवानी में बात बे-बात हँसती रहती थी कितनी गुस्ताख़ थी जवानी में भीड़ से दूर बैठी रहती हूँ बात करती हूँ बे-ज़बानी में फिर ये आवाज़ डूब जाएगी जिस्म की बे-निशाँ कहानी में वो फ़लक पर नहीं मिलेगा 'सहर' चाँद कल गिर गया था पानी में