साए के लिए है न ठिकाने के लिए है दीवार तो आँगन में उठाने के लिए है देखो तो हर इक शख़्स के हाथों में हैं पत्थर पूछो तो कहीं शहर बनाने के लिए है रख देते हैं पत्थर मिरी तहरीर के ऊपर कहते हैं ये काग़ज़ को दबाने के लिए है दर दिल का 'सुहैल' आज ज़रा बंद न करना इक शख़्स अभी लौट के आने के लिए है