सब कहते हैं देख उस को सर-ए-राह ज़मीं पर ''किस राह से आया ये उतर माह ज़मीं पर'' बीमार की तेरे तो कहानी है बड़ी पर क़िस्सा है अब इक दम में ही कोताह ज़मीं पर तू छत पे चढ़ा उस के है ऐसा कि बस आख़िर छोड़ेगी उतरवा के तिरी चाह ज़मीं पर ये वो दिल-ए-मुज़्तर है कि जूँ बर्क़-ए-तपीदा गाहे ब-फ़लक आए नज़र गाह ज़मीं पर कुछ सोच के बस काँपने लगता हूँ मैं 'जुरअत' पड़ता है क़दम ज़ोर से जब आह ज़मीं पर