सब के चेहरों पे शब-ए-ग़म की कसाफ़त क्या है आज के दौर में ख़्वाबों की हक़ीक़त क्या है आइने टूट चुके हैं तो ज़बाँ से कह दो क्यों छुपाते हो ज़माने से हिमाक़त क्या है वो ज़मीं-बोस है इस में है शरारत की नुमू अर्श वालों में मगर आज सियासत क्या है दर्द की तेज़ हवाओं से गुज़रना है तुम्हें हाए दो-चार चराग़ों की रिफ़ाक़त क्या है जिन में एहसास की ख़ुशबू ही नहीं है 'मसऊद' ऐसे अशआ'र सुनाने की ज़रूरत क्या है