सब को ये फ़िक्र हाथ से अब एक पल न जाए दुनिया हुदूद-ए-वक़्त से आगे निकल न जाए सब को फ़रेब दे मगर इतना रहे ख़याल बहरूप भरते भरते ये चेहरा बदल न जाए ग़म से निबाह कीजिए इस तमकनत के साथ दिल का शरारा आँख की हद तक मचल न जाए ज़ौक़-ए-नज़र दिया है तो ज़र्फ़-ए-नज़र भी दे डर है मुझे शुऊर की वुसअत निगल न जाए सुनता हूँ आप मेरी अयादत को आएँगे करता हूँ सौ जतन कि तबीअ'त सँभल न जाए वो दर्द है कि फट न पड़े दिल कहीं 'नदीम' वो ख़ौफ़ है कि रीढ़ की हड्डी पिघल न जाए