सब तमन्नाओं से ख़्वाबों से निकल आए हैं हम बहुत दूर सराबों से निकल आए हैं ख़ुद को जब भूल से जाते हैं तो यूँ लगता है ज़िंदगी तेरे अज़ाबों से निकल आए हैं रौशनी मुझ को मिली है तो ज़रा जाँच तो लूँ आज सब चेहरे नक़ाबों से निकल आए हैं हम निकल आए बहिश्त-ए-शब-ए-तन्हाई से और कुछ लोग हिजाबों से निकल आए हैं हम भी इस शहर की वीरान सी रौनक़ में कहाँ अपने मानूस ख़राबों से निकल आए हैं