सब ये कहते हैं कि अपने राहबर में क्या न था मैं ये कहता हूँ कि तक़दीर-ए-बशर में क्या न था फिर वही वहशी उड़ानें फिर वही वहशी हवा कब तलक ये सोचता मैं बाल-ओ-पर में क्या न था घर में रह कर सोचता रहता था क्या है काएनात घर के बाहर सोचता ये हूँ कि घर में क्या न था दो क़दम जो साथ चलता है तो कह देता हूँ मैं राह में जो छुट गया उस हम-सफ़र में क्या न था