सुनते हैं मोहब्बत धोका है धोका न हुआ अच्छा ही हुआ उस शाहिद-ए-राना से कोई वा'दा न हुआ अच्छा ही हुआ इक जिंस-ए-गिराँ है दिल अपना सद-शुक्र कि अपने पास तो है इन ज़ोहरा-जबीनों से यारो सौदा न हुआ अच्छा ही हुआ क्या जाने कहाँ ठोकर लगती क्या जाने कहाँ सर झुक जाता कितनी ही पिलाई उस ने मगर नश्शा न हुआ अच्छा ही हुआ ख़ुद्दार तबीअत अपनी भी ख़ुद्दार तबीअत उस की भी उस पा-ए-निगारीं पर हम से सज्दा न हुआ अच्छा ही हुआ ये बात उसी की सच निकली वो जीत गया मैं हार गया इक नासेह-ए-मुश्फ़िक़ से अपना झगड़ा न हुआ अच्छा ही हुआ एहसास के शो'ले जल उठते दिल दुख जाता जी छुट जाता उस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में जाना न हुआ अच्छा ही हुआ हर अश्क हमारा गौहर है हर अश्क हमारा शबनम है 'इक़बाल' हमें इन अश्कों का रोना न हुआ अच्छा ही हुआ