सबा-ओ-गुल को मह-ओ-नज्म को दिवाना किया मिरी सरिश्त ने हर रंग को निशाना किया वही बहार जिसे तुम बहार कहते हो सुलूक हम से बहुत उस ने बाग़ियाना किया जहाँ भी तेज़ हवाओं ने साथ छोड़ दिया ग़ुबार-ए-राह ने अपना वहीं ठिकाना किया हम आख़िर उस के ख़द-ओ-ख़ाल देखते कैसे हमेशा उस ने क़रीब आने से बहाना किया सुख़नवरी की इजाज़त तो दिल ने दे दी थी मगर ज़बान ने इज़हार-ए-मुद्दआ न किया सहर की आँख से आँसू टपक न जाएँ 'नईम' ये सोच कर न बयाँ रात का फ़साना किया