सभी यहाँ हैं दरीदा-दामन सभी का अब हाल एक सा है

सभी यहाँ हैं दरीदा-दामन सभी का अब हाल एक सा है
अब ऐसी सूरत में किस से पूछें ये क्या बना है ये क्या हुआ है

कुछ इस तरह से कभी हुआ था सुकूत-ए-दार-ओ-रसन का आलम
न कोई दीवाना सर-ब-कफ़ है न कोई वहशी डटा हुआ है

मरज़ ये क्या है कि जिस के डर से तमाम दुनिया लरज़ रही है
ये क्या वबा है कि जिस के आगे हर एक का सर झुका हुआ है

वो आसमानों पे जाने वाले वो चाँद से मिट्टी लाने वाले
न जाने अब वो कहाँ गए हैं हर एक घर में छुपा हुआ है

वो सब मीज़ाइल ये सारे एटम बस इक क्रोना की मार निकले
अब ऐसे आलम में देख लें सब कि चीन कैसे डटा हुआ है

ये वाइ'ज़ों के तमाम ख़ुत्बे हमारी मुश्किल का हल नहीं हैं
अब इस को ख़ुद हम ही हल करेंगे ये मसअला जो बना हुआ है

न कोई भी हम पे पहरा-ज़न है कि हम कहीं आएँ और न जाएँ
हर एक इंसान अपने घर में ख़ुद अपना क़ैदी बना हुआ है

कोई बड़ा हो कि या हो छोटा कोई गदा हो कि बादशह हो
इस इब्तिला का कमाल ये है कि सब को यकसाँ किया हुआ है

सिवाए ख़ामोश चाँद तारों के इन ख़लाओं में कुछ नहीं है
ये ज़िंदगी की ही रौनक़ें हैं कि जिन से मेला सजा हुआ है

ये क्या ग़ज़ब है कि मुद्दतों से ख़िज़ाँ ही गुलशन में ख़ेमा-ज़न है
जो मौसम-ए-गुल का कारवाँ था वो कारवाँ क्यों रुका हुआ है

हमारा ज़ौक़-ए-सुख़न है जारी इसे किसी शय का डर नहीं है
न हुस्न हम से अलग हुआ है न इश्क़ हम से जुदा हुआ है

ख़ुदा तो उन से ख़फ़ा है 'असलम' जो उस के क़ानून तोड़ते हैं
वगर्ना हम ऐसे बे-बसों से ख़ुदा भला कब ख़फ़ा हुआ है


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