सब्ज़-रुतों में रंग-ए-ख़िज़ानी पढ़ते हैं हर चेहरे पर एक कहानी पढ़ते हैं नाम नहीं है कोई भी दरवाज़े पर तख़्ती पर बस एक निशानी पढ़ते हैं तिश्ना-लब लहरों ने क्या क्या लिख डाला ख़ुश्क रेत पर पानी पानी पढ़ते हैं नया सबक़ तो याद नहीं होता हम को जब पढ़ते हैं बात पुरानी पढ़ते हैं जब कोई मानूस सी ख़ुशबू आती है लम्स में उस के रात की रानी पढ़ते हैं फ़ुर्सत के लम्हों में हम अक्सर ऐ 'रिंद' तहरीरें जानी पहचानी पढ़ते हैं