सब्र वहशत-असर न हो जाए कहीं सहरा भी घर न हो जाए रश्क-ए-पैग़ाम है इनाँ-कश-ए-दिल नामा-बर राहबर न हो जाए देखो मत देखियो कि आईना ग़श तुम्हें देख कर न हो जाए हिज्र-ए-पर्दा-नशीं में मरते हैं ज़िंदगी पर्दा-ए-दर न हो जाए कसरत-ए-सज्दा से वो नक़्श-ए-क़दम कहीं पामाल-ए-सर न हो जाए मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख तुझ को अपनी नज़र न हो जाए मेरे आँसू न पोंछना देखो कहीं दामान तर न हो जाए बात नासेह से करते डरता हूँ कि फ़ुग़ाँ बे-असर न हो जाए ऐ क़यामत न आइयो जब तक वो मिरी गोर पर न हो जाए माना-ए-ज़ुल्म है तग़ाफ़ुल-ए-यार बख़्त-ए-बद को ख़बर न हो जाए ग़ैर से बे-हिजाब मिलते हो शब-ए-आशिक़ सहर न हो जाए रश्क-ए-दुश्मन का फ़ाएदा मालूम मुफ़्त जी का ज़रर न हो जाए ऐ दिल आहिस्ता आह-ए-ताब-शिकन देख टुकड़े जिगर न हो जाए 'मोमिन' ईमाँ क़ुबूल दिल से मुझे वो बुत आज़ुर्दा गर न हो जाए