सब्ज़ जज़्बों की जल-तरंग कथा आज कर देगी सब को दंग कथा तेरी आँखों में रंग भर देगी ख़्वाब-ज़ारों की ख़्वाब-रंग कथा मैं हवाओं में जैसे उड़ने लगी बन रहा जब था अंग अंग कथा वो सुनाता गया दिसम्बर में सब्ज़ आँखों से भंग भंग कथा लुत्फ़ और लुत्फ़ भी दिसम्बर में वाह रे वाह ये उमंग कथा इक सुकूँ रच गया रग-ओ-पय में दे चुकी तुझ को रूप रंग कथा है 'दुआ' का वसीला ज़ात अपनी कहते हैं मुझ से ख़ार-ओ-संग कथा