सहरा पे नूर उतर रहा था सूरज हया से मर रहा था पानी भी रो पड़ा था उस दम पानी भी गिर्या कर रहा था हर आँख ज़ख़्म धो रही थी हर ज़ख़्म बैन कर रहा था सज्दे तेरा नसीब हाए नेज़े पे एक सर रहा था दरिया का पानी जब हुआ ख़ुश्क सहरा लहू से भर रहा था अक्स-ए-‘दुआ’-ए-ख़ैर चमका दिल हर्फ़ हर्फ़ बिखर रहा था