सच तो ये है कि तमन्नाओं की जाँ होती है वही इक बात जो हैरत में निहाँ होती है हाल कह देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर कितनी ख़ामोश निगाहों की ज़बाँ होती है मेरे एहसास ओ तफ़क्कुर में सुलगती है जो आग वही मज़लूम के अश्कों में निहाँ होती है हाए वो वक़्त कि जब उन की हसीं आँखों से एक पुर-कैफ़ तजल्ली सी अयाँ होती है लोग कहते हैं जिसे हुस्न-ए-अदा की शोख़ी यही रंगीन इशारों का बयाँ होती है कितनी प्यारी है वो मासूम तमन्ना ऐ दोस्त जो तज़ब्ज़ुब की फ़ज़ाओं में जवाँ होती है