सच्चा बना दिया कभी झूटा बना दिया उस बेवफ़ा ने मुझ को जो चाहा बना दिया उस कोहकन को अहल-ए-जुनूँ में करो शुमार जिस ने पहाड़ काट के रस्ता बना दिया ज़ालिम ने हर मक़ाम पे रुस्वा किया मुझे मेरी वफ़ा को उस ने तमाशा बना दिया बस देखते ही देखते बाद-ए-सुमूम ने शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का ये भी कमाल देख पत्थर को छू के हाथ से लाला बना दिया क़द्द-आवरी पे नाज़ जो करता था कल तलक देख आज उस को वक़्त ने बौना बना दिया 'शादाँ' ये उस की ज़ात से शिकवा फ़ुज़ूल है ऐसा बना दिया मुझे वैसा बना दिया