ठंडी हवा चली तो घुटन और बढ़ गई सूरज के डूबते ही तपन और बढ़ गई तर्क-ए-तअल्लुक़ात से दिल मुज़्तरिब तो था तुम ग़ैर से मिले तो जलन और बढ़ गई दिल को न कुछ मलाल था काँटों के ज़ख़्म से फूलों के तज़्किरे से चुभन और बढ़ गई जब रुत्बा-ए-बुलंद मिला आप के तुफ़ैल माथे के तज़्किरे से चुभन और बढ़ गई तौसीफ़ तेरी सुन के ज़बान-ए-रक़ीब से मिलने की तुझ से दिल में लगन और बढ़ गई बरसों सफ़र के बाद भी मंज़िल न जब मिली हिम्मत गई बदन की थकन और बढ़ गई फूलों के साथ देख कर उस का बुरा सुलूक 'शादाँ' के दिल में फ़िक्र-ए-चमन और बढ़ गई