सड़कों पे बहुत ख़ल्क़-ए-ख़ुदा देखते रहना क्या चीज़ है जीने की सज़ा देखते रहना बह जाना ख़मोशी से कहीं दर्द का पानी और दिल को सदा ख़ुश्क पड़ा देखते रहना मिलने के लिए जाना उसे शौक़ से लेकिन इस रुख़ पे उड़ा रंग-ए-वफ़ा देखते रहना ले जाना उसे बज़्म-ए-निगाराँ में वहाँ फिर कब आए नज़र सब से जुदा देखते रहना मुमकिन है कि मिल जाए कभी कोई इशारा मौसम की ये बे-मेहर अदा देखते रहना कमरे में पड़े रहना घुटन ओढ़ के 'शाहीन' दीवारों पे तस्वीर-ए-हवा देखते रहना