सद-हैफ़ कि कमज़ोर है चश्मान बुढ़ापा सुस्ती सती जुम्बिश में है दंदान बुढ़ापा अज़ बस-कि हुआ हैगा गुज़र फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ का रौनक़ नहीं रखता है गुलिस्तान बुढ़ापा अरबल के भँवर में गई है डूब जवानी जिस वक़्त उठा जग मने तूफ़ान बुढ़ापा तस्बीह-ओ-मुसल्ला-ओ-असा ऐनक-ओ-रा'शा जोबन ने दिया भेज ये सामान बुढ़ापा ग़फ़लत की रुई दूर न की शीशा-ए-दिल सूँ मय-ख़ाने में मस्ताँ ने सुन इलहान बुढ़ापा अशआ'र हैं तारीफ़ सपेदी की सरापा इस वास्ते रंगीं नहीं दीवान बुढ़ापा जोबन के भवन में लगी है आतिश-ए-गर्मी छिड़के है तहूर आब ज़मिस्तान बुढ़ापा गर्दूं की तरह ख़म हुआ क़द क़ौस-ए-क़ुज़ह का खींचा है मगर ज़ोफ़ सूँ कैवान बुढ़ापा अमराज़ की अफ़्वाज का यूरिश है बदन पर इस मुल्क में मग़्लूब है सुल्तान बुढ़ापा अब बुलबुल-ए-जाँ तंग हुआ तन के क़फ़स में पर्वाज़ करे देख के ज़िंदान बुढ़ापा लज़्ज़त नहीं देता है दहन बीच कसू के ऐ 'मुबतला' क्या सर्द हैगा नान बुढ़ापा