सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही लेकिन ख़ुदा की बात जहाँ थी वहीं रही ज़ोर-आज़माइयाँ हुईं साइंस की भी ख़ूब ताक़त बढ़ी किसी की किसी में नहीं रही दुनिया कभी न सुल्ह पे माइल हुई मगर बाहम हमेशा बरसर-ए-पैकार-ओ-कीं रही पाया अगर फ़रोग़ तो सिर्फ़ उन नुफ़ूस ने जिन की कि ख़िज़्र-ए-राह फ़क़त शम-ए-दीं रही अल्लाह ही की याद बहर-हाल ख़ल्क़ में वज्ह-ए-सुकून-ए-ख़ातिर-ए-अंदोह-गीं रही