सदियों लहू से दिल की हिकायत लिखी गई मेरी वफ़ा गई न तिरी बे-रुख़ी गई दिल दे के उस को छूट गए अपने-आप से इस से छुटे तो हाथ से दुनिया चली गई याद आई अपनी ख़ाना-ख़राबी बहुत मुझे दीवार जब भी शहर में कोई चुनी गई उस को भी छेड़-छाड़ का अंदाज़ आ गया देखा मुझे तो जान के अंगड़ाई ली गई नाख़ुन के चाँद ज़ुल्फ़ के बादल लबों के फूल किस एहतिमाम से तुझे तश्कील दी गई लम्हे को ज़िंदगी के लिए कम न जानिए लम्हा गुज़र गया तो समझिए सदी गई तुम क्या पियोगे चूम के रख दो लबों से जाम 'तसनीम' ये शराब है कितनों को पी गई