सदमे यूँ ग़ैर पर नहीं आते तुम्हें जौर इस क़दर नहीं आते फिर तसल्ली की कौन सी सूरत ख़्वाब में भी नज़र नहीं आते आते हैं जब कि ना-उमीद हों हम कभी वो वादे पर नहीं आते रोज़ के इंतिज़ार ने मारा साफ़ कह दो अगर नहीं आते नहीं मालूम इस का क्या बाइस रोज़ कहते हैं पर नहीं आते और तुम किस के घर नहीं जाते एक मेरे ही घर नहीं आते अब तो है क़हर आप का जाना नहीं आते अगर नहीं आते सच है हीले मुझी को आते हैं और तुम्हें किस क़दर नहीं आते उन को मैं इस तरह भुलाऊँ 'निज़ाम' याद किस बात पर नहीं आते