मेरी फ़रियाद के शो'लों को इनायत समझो मेरे हर ज़ख़्म को उल्फ़त की रिवायत समझो एक मजबूर-ए-तमन्ना की गिराँ-बार थकन मैं ने कब तुम से कहा ये इसे उल्फ़त समझो लज़्ज़त-ए-ग़म में नहीं ख़ून-ए-तमन्ना का इलाज मिरी हर टीस को ख़ामोश बग़ावत समझो ये गिराँ-बारी-ए-एहसास मिरी मशअ'ल है मेरी फ़रियाद को तुम एक हिदायत समझो एक मुजरिम है जिसे कहते हैं इंसान का दिल इस नदामत को मिरी एक शिकायत समझो