सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ गर्दिश-ए-वक़्त! तिरे होश ठिकाने लग जाएँ वो तो वो उस की मईयत में गुज़ारा हुआ पल जो भुलाएँ तो भुलाने में ज़माने लग जाएँ मिरे क़ादिर! जो तू चाहे तो ये मुमकिन हो जाए रफ़्तगाँ शहर-ए-अदम से यहाँ आने लग जाएँ बज़्म-ए-दुनिया से चलूँ ऐसा न हो सब मिरे यार एक एक कर के मुझे छोड़ के जाने लग जाएँ ख़्वाहिश-ए-वस्ल! तिरा क्या हो जो हम साल-ब-साल अश्रा-ए-सोज़ ग़म-ए-हिज्र मनाने लग जाएँ हम समझ पाए न 'फ़रताश' मिज़ाज-ए-ख़ूबाँ दिल चुराएँ तो कभी आँखें चुराने लग जाएँ