सफ़र अंदर सफ़र करते अगर तुम कहानी मुख़्तसर करते अगर तुम हमें मंज़ूर थे सारे तमाशे किसी उन्वान पर करते अगर तुम सियासत मसअला कोई नहीं था किसी के नाम पर करते अगर तुम हमारे राब्ते कटने लगे हैं कहीं फिर नामा-बर करते अगर तुम हक़ीक़त खुल के आ जाती नज़र में हक़ीक़त पर नज़र करते अगर तुम