सफ़र के तसव्वुर से सहमा हुआ हूँ बड़ी देर से यूँ ही ठहरा हुआ हूँ उधर डूबते जा रहे हैं सितारे इधर मैं ख़यालों में उलझा हुआ हूँ जलाने के क़ाबिल न लिखने के लाएक़ मैं काग़ज़ हूँ सादा प भीगा हुआ हूँ सँभाले हूँ ख़ुद को बड़ी काविशों से मुझे छू न लेना मैं चटख़ा हुआ हूँ मुसलसल पड़ी है कड़ी धूप मुझ पर मिरा रंग देखो मैं कैसा हुआ हूँ न बाक़ी है साया न बर्ग-ओ-समर हैं मैं मौसम की साज़िश का मारा हुआ हूँ थमेंगी कभी तो मुख़ालिफ़ हवाएँ यही सोच कर ख़ुद में सिमटा हुआ हूँ