सफ़र में हम अकेले तो नहीं थे मोहब्बत थी झमेले तो नहीं थे हमारे दिल में उन की चाह थी बस हम उन के दिल से खेले तो नहीं थे नमी उस रोज़ थी चंद आँसुओं की इन आँखों में ये रेले तो नहीं थे तक़ाज़ा कर रहे हैं सब ही लेकिन वो फ़ाक़े सब ने झेले तो नहीं थे था मंज़र मुख़्तलिफ़ कुछ सब्ज़ कल तक हथेली पर ये ढेले तो नहीं थे