सफ़र में रास्ता जो पुर-ख़तर मिला था मुझे बहुत ही ख़ूब था क्यूँ राहबर मिला था मुझे जहाँ में जब कोई जिंस-ए-गराँ-शनास न था तो इतना बेश-बहा क्यूँ गुहर मिला था मुझे फिर उस के बा'द मिरा सर रहा न शानों पर दयार-ए-इश्क़ में वो संग-ए-दर मिला था मुझे मैं ता-हयात फ़रिश्तों के पर कुतर लेता जिगर का दर्द मगर मुख़्तसर मिला था मुझे चमन में यार-ए-शरर-बार की ख़ुदाई में शजर मिला था न कोई समर मिला था मुझे जो चाहता उसे मैं भी तबाह कर देता उसी के क़ुर्ब में ऐसा हुनर मिला था मुझे सुना था सूरा-ए-इख़लास मैं ने आज़र से सनम-कदे में ख़ुदा का ही घर मिला था मुझे है मो'जिज़ा कि वो सिदरा मक़ाम तक पहुँचा जो एक ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर मिला था मुझे ये मेरी आबला-पाई मुझे मुबारक हो वो दिन यही था कि इज़्न-ए-सफ़र मिला था मुझे कभी 'बशीर' को मैं ने जुनूँ में देखा था अजीब साहब-ए-फ़हम-ओ-नज़र मिला था मुझे