ये तो सच है कि 'सफ़ी' की नहीं निय्यत अच्छी हाँ मगर पाई है ज़ालिम ने तबीअत अच्छी क्या हुआ आप ने पाई है जो सूरत अच्छी आदमी वो है कि जिस की हो तबीअत अच्छी आज वो पूछने आए हैं हमारा मतलब सुन लिया था कहीं मतलब की मोहब्बत अच्छी ख़ूबसूरत है वही जिस पे ज़माना रीझे यूँ तो हर एक को है अपनी ही सूरत अच्छी कुछ भी हो एक तमन्ना तो बंधी रहती है तुझ से सौ दर्जा तिरे मिलने की हसरत अच्छी नहीं अपने में कोई चाहने वाला तेरा डाल दी डालने वालों ने अदावत अच्छी कोई अरमान नहीं है तो फ़क़त बेताबी वस्ल से तेरे सितमगर तिरी फ़ुर्क़त अच्छी उन के आते ही बदल जाते हैं तेरे तेवर ऐ 'सफ़ी' चाहिए इंसान की निय्यत अच्छी