सफ़ीना ज़ीस्त का तूफ़ान से निकल आया कि दिल है इश्क़ के हैजान से निकल आया जब इन की ज़ुल्फ़ों को सूँघा तो अंदलीब-ए-ख़याल गुलाब ओ नर्गिस ओ रैहान से निकल आया कोई जो प्यारा लगे रोकता हूँ हीले से हवाला देखिए क़ुरआन से निकल आया सुना तो होगा ये क़िस्सा जनाब-ए-यूसुफ़ का पियाला भाई के सामान से निकल आया हर आने वाला ये कहता है मेरे आने से हमारा देस है बोहरान से निकल आया मैं जिस का पूछता फिरता था गुल-फ़रोशों से वो फूल घर के ही दालान से निकल आया तुम्हारे ग़म की कहानी सुनी तो 'गीलानी' मैं अपने हाल-ए-परेशान से निकल आया