तअ'ल्लुक़ात में इतना सा एहतिमाम तो रख न कर तू मुझ से मोहब्बत दुआ सलाम तो रख बताऊँ कैसे तिरे हिज्र में कटे मिरे दिन तू एक शब मिरे घर में कभी क़ियाम तो रख मिरी सफ़ाई में भी शीर-ख़्वार बोलेंगे तू ऐ ज़ुलेख़ा महल में मुझे ग़ुलाम तो रख तलाश कैसे करूँगा अंधेरे में तिरा घर जला के बाम पे कोई चराग़-ए-शाम तो रख है कितना मय से तअ'ल्लुक़ मिरा बताता हूँ सुराही रख मिरे आगे तू पहले जाम तो रख सुख़न-शनास बिठाएँगे सर पे 'गीलानी' तू उन के सामने अपना कोई कलाम तो रख