सहर में गुम थे ज़मीं आसमान ख़ुशबू के वो कर रहा था फ़ज़ाएल बयान ख़ुशबू के हवा-ए-शहर-ए-मोहब्बत मुझे वहीं ले चल ठहर गए हैं जहाँ कारवान ख़ुशबू के ख़ुशी से जिस की रिफ़ाक़त में खिल उठा था दिल हम आज तक हैं उसी मेहरबान ख़ुशबू के क़दम क़दम पे बहारें हैं हम-सफ़र मेरी हैं सर पे साया-फ़गन साएबान ख़ुशबू के हवा के रंग के बादल के हैं दर-ओ-दीवार बने हुए हैं फ़ज़ा में मकान ख़ुशबू के लहू हमारा अमानत हसीं गुलाबों की ख़याल अपने सभी तर्जुमान ख़ुशबू के जो इत्र-बेज़ बनाया है अपनी महफ़िल को तो लफ़्ज़ ढूँडिए शायान-ए-शान ख़ुशबू के इक और पढ़िए महकती हुई ग़ज़ल 'सीमा' हैं अहल-ए-बज़्म सभी क़द्र-दान ख़ुशबू के