सहरा से चले हैं सू-ए-गुलशन ख़ूनीं-जिगरान-ए-चाक-दामन पैग़ाम-ए-बहार दे रही है दाग़ों की झलक दिलों की उलझन रक़्साँ है नसीम बर्ग-ए-गुल पर शबनम में है घुंघरूओं की छन-छन ग़ुंचों के बदन में सनसनी है मस्ती में छुआ सबा ने दामन दिलकश न हो क्यूँ कलाम 'असर' का सीखा है ये उस ने 'मीर' से फ़न