हिम्मत-ओ-अज़्म बदल जुरअत-ए-किरदार बदल रुख़-ए-दौराँ को पलट वक़्त की रफ़्तार बदल अब तो कहते हो वफ़ा हम से करोगे लेकिन वक़्त आने पे कहीं जाए न सरकार बदल हश्र से क़ब्ल कहीं हश्र न बरपा हो जाए देख लिल्लाह ज़रा शोख़ी-ए-रफ़्तार बदल गर बदलता है तुझे दहर का फ़र्सूदा निज़ाम तुझ पे लाज़िम है कि हर बात का मेआ'र बदल मंज़िल-ए-इश्क़ नहीं अक़्ल के बस की ऐ दोस्त है अगर साहिब-ए-दिल क़ाफ़िला-सालार बदल तेरी रहमत पे जो होता न भरोसा उन को ऐन मुमकिन है कि जाते ये गुनहगार बदल