सहरा तो पार कर लिया दरिया भी पार कर किस ने कहा था तुझ से कि इश्क़ इख़्तियार कर मैं ने कहा था शहर में कई बा-वफ़ा भी हैं ये तो नहीं कहा था कि जा ए'तिबार कर बुझता हुआ चराग़ ये फ़रियाद कर गया नफ़रत हवा से और चराग़ों से प्यार कर बरसों से इक मक़ाम पे ठहरा हूँ मैं 'ख़लील' उस ने कहा था आऊँगा तू इंतिज़ार कर