ब-रंग-ए-शे'र गिरे और बार बार गिरे हमारे ज़ेहन पे किरनों के आबशार गिरे ग़मों की राह में साबित-क़दम हैं दीवाने बिसात-ए-ऐश पे कितने नशात-ए-कार गिरे चमन खुला तो नई निकहतों के आँचल पर शगुफ़्त-ए-गुल से तिरे अक्स बे-शुमार गिरे ज़मीन चाँद का टुकड़ा है जिस की ज़ुल्मत पर कई उजाले हर इक शब सितारा-वार गिरे हमें भी फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब उस फ़ज़ा में जहाँ किरन किरन लब-ओ-रुख़्सार की फुवार गिरे उभर रहा है जो मशरिक़ के हर ख़राबे से किसे ख़बर कि कहाँ जा के ये ग़ुबार गिरे