सहबा-कशों की ख़ाक है हर इक मक़ाम पर By Ghazal << ख़ुश्बू को रंगतों पे उभरत... हुस्न की लाई हुई एक भी आफ... >> सहबा-कशों की ख़ाक है हर इक मक़ाम पर साक़ी लुंढा शराब को मस्तों के नाम पर ज़र हो तो हाथ आएँ हसीनान-ए-सीम-तन सय्याद का शिकार है मौक़ूफ़ दाम पर क़ासिद को यार के हों पयम्बर मैं कह रहा ज़ाहिद सुनाएँगे सलवात इस कलाम पर Share on: