साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही फ़िक्र शाहाना है अंदाज़ फ़क़ीराना सही ज़िक्र-ए-का'बा न सही क़िस्सा-ए-बुत-ख़ाना सही हुस्न-ए-तफ़्हीम सलामत कोई अफ़्साना सही मुनअ'किस ज़ेहन-ओ-नज़र में हैं ख़द-ओ-ख़ाल तिरे तुझ को समझा तो बहुत है तुझे देखा न सही सज्दा पाबंद-ए-तअ'य्युन तो नहीं दीवाने है अगर बाब-ए-हरम बंद तो बुत-ख़ाना सही हूर-ओ-कौसर के तसव्वुर से कहाँ तक बहलें नार-ए-इमरोज़ ही दे जन्नत-ए-फ़र्दा न सही निगह-ए-दिल के रवाबित से हम-आहंग तो है मेरी दुनिया तिरी दुनिया से जुदागाना सही मुनफ़रिद फिर भी है ऐ हुस्न हक़ीक़त उस की ज़िंदगी इश्क़ की उन्वान-ए-सद-अफ़साना सही