सहो बेचारगी का दुख By Ghazal << ज़माना झुक गया होता अगर ल... है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला >> सहो बेचारगी का दुख उठाओ बंदगी का दुख सभी को दुख है ग़ुर्बत का मुझे आसूदगी का दुख तुझे मेरी ज़रूरत थी सो अब क्या बे-रुख़ी का दुख किसी की इक ग़लत-फ़हमी किसी की ज़िंदगी का दुख तुम्हारे बोलने का डर तुम्हारे ख़ामुशी का दुख Share on: