सहरा सहरा चीख़ता फिरता हूँ मैं हो के दरिया किस क़दर प्यासा हूँ मैं जान कर गूँगा हूँ और बहरा हूँ मैं इस लिए इस शहर में ज़िंदा हूँ मैं इस को मंज़िल जानते हैं राहबर इत्तीफ़ाक़न जिस जगह ठहरा हूँ मैं क़ैद हूँ मैं वुसअ'तों के बावजूद वो मिरा साहिल है और दरिया हूँ मैं उस ने रस्मन जब भी पूछा मेरा हाल मैं ने तनज़न कह दिया अच्छा हूँ मैं वो शजर तन्हा शजर चौपाल का उस शजर का आख़िरी पत्ता हूँ मैं