सहरा में हूँ जुनूँ के भी आसार ही नहीं सर फोड़ने के वास्ते दीवार ही नहीं जिस की दवा-ए-दिल की ज़रूरत के वास्ते हम चारागर हुए तो वो बीमार ही नहीं अपने वतन की ख़ाक लिए फिर रहा हूँ मैं उस की वफ़ाओं से मुझे इंकार ही नहीं तक़दीर के हैं खेल जवाँ इश्क़ जब हुआ तब खेलने के वास्ते मझंदार ही नहीं हम रह-नवर्द-ए-शौक़ को सहरा ही ठीक है क्या लुत्फ़ मय-कदे में अगर यार ही नहीं सद इफ़्तिख़ार ग़ैरों को दीदार-ए-आम है सद-हैफ़ हम को दावत-ए-दीदार ही नहीं बे-बस ही कर दिया है इरादों ने ऐ 'सुहैल' क़िस्मत ने कर दिया मुझे ला-चार ही नहीं