बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात तू ने भी न की अपनी कोई जादूगरी रात गुम हो गई उम्मीद-ए-मुलाक़ात सहर में ये तू ने मिरे साथ अजब चाल चली रात वो ले गया साथ अपने उजाले मिरे दिल के काटे न कटी हम से जो थी दर्द-भरी रात अश्कों से कहा मैं ने जुदाई का फ़साना इस पर ये कहा उस ने कि आएगी नई रात शिकवे मिरे और उस का बताना इसे इल्ज़ाम कुछ तय न हुआ और यूँही बीत गई रात जो मेरे तसव्वुर में था हँगामा-ए-महशर उस के लिए मख़्सूस हुई वस्ल की ही रात इस में ही तो है चाँद सितारों का मुक़द्दर इक ख़ाल-ए-सियह-ताब की है जल्वागरी रात जिस रात कभी कोई मेरे साथ रहा था आ जाए 'सुहैल' आज दुआ है की वही रात