सैकड़ों साल की ज़बान हूँ मैं फिर भी बे-जान दास्तान हूँ मैं कुछ समझ में मिरे नहीं आता मैं ज़मीं हूँ या आसमान हूँ मैं तू है रौनक़ मिरी मैं तेरे बिना एक वीरान सा मकान हूँ मैं जिस ख़ज़ाने की तुम तलाश में हो उस ख़ज़ाने का इक निशान हूँ मैं सिर्फ़ दो-चार दिन की बात नहीं ज़िंदगी भर का साएबान हूँ मैं