मिलते हैं छुट जाते हैं साथी फिर भी भाते हैं दिल में कोई दर्द न था अब वो दिन याद आते हैं हो जिन का एहसास फ़क़ीर झोली वो फैलाते हैं लोग सभी की कमज़ोरी औरों तक पहुँचाते हैं रोके हाथ नहीं रुकते फूल ऐसे मध-माते हैं ग़म से तो क्या घबराते हम तुम से घबराते हैं जिन से कुछ उम्मीद न हो वो भी काम आ जाते हैं हो जाते हैं सब उन के जिन से राहत पाते हैं 'मंज़िल' लोहा ठेरी हूँ कहिए क्या फ़रमाते हैं