साइल-ए-वक़्त हैं दामान-ए-करम देखेंगे हम तिरे दस्त-ए-तसर्रुफ़ का भरम देखेंगे हादसे कितने मुक़ाबिल हैं ये हम देखेंगे और कब तक है ये तूफ़ान में दम देखेंगे सरफ़रोशान-ए-वफ़ा हम तो अज़ल से हैं मगर कितनी ख़ूँ-रेज़ है ये तेग़-ए-सितम देखेंगे हम ने राहों को उजाले तो दिए दौर-ए-ख़िरद कितने रौशन हैं तिरे नक़्श-ए-क़दम देखेंगे ज़िक्र जब अपने हर इक ज़ख़्म-ए-वफ़ा का होगा गुल-फ़िशानी भी सर-ए-लौह-ओ-क़लम देखेंगे ज़िंदगी ख़्वाब सही तेरी तमन्ना फिर भी उम्र भर तेरे तसव्वुर के सनम देखेंगे जाने किस मोड़ पे ले आया हमें कर्ब-ए-हयात अब न वो ज़ुल्फ़ न वो ज़ुल्फ़ के ख़म देखेंगे प्यार हमदर्दी वफ़ा मेहर-ओ-मुरव्वत अख़्लाक़ जो भी देखेंगे अब इस दौर में कम देखेंगे अपने ही ख़ूँ से चमक उट्ठेगी तारीख़ 'कलीम' अहद-ए-हाज़िर के जो माथे पे रक़म देखेंगे