सैर-ए-चमन है और वो गुल-रू कनार में मैं बे-पिए भी मस्त हूँ अब की बहार में कब से हूँ क्या बताऊँ तलाश-ए-बहार में इक फूल भी न था चमन-ए-रोज़गार में चालें नई नई सी हैं रफ़्तार-ए-यार में पड़ जाएगा ख़लल रविश-ए-रोज़गार में दिल और जान दोनों भी हैं किस शुमार में आप इख़्तियार में हैं तो सब इख़्तियार में क्यूँ ना-उमीद आप का उम्मीद-वार हो सब कुछ है क्या नहीं निगह-ए-शर्मसार में मुझ को जब अपनी बात का रहता नहीं ख़याल क्यूँ बद-ज़नी न आए दिल-ए-राज़दार में इस से ज़ियादा लुत्फ़ का तालिब नहीं हूँ मैं उम्मीद बन के रह दिल-ए-उम्मीद-वार में या मौत आएगी मुझे या नींद आएगी और एक शब गुज़ार तो दूँ इंतिज़ार में ऐ दर्द-ए-इश्क़ बात तो जब है कि मेरे दोस्त मरने के बा'द चैन न पाऊँ मज़ार में नाला ख़िलाफ़-ए-वा'दा किया हाए क्या किया सुन ले जो वो तो फ़र्क़ पड़ा ए'तिबार में वो क्यूँ बुलाएँ बज़्म में मुझ बद-नसीब को घुल-मिल के बैठना नहीं आता है चार में मैं ने भी तौबा तोड़ दी अपनी तो क्या हुआ दुनिया के लोग क्या नहीं करते बहार में मेरा वक़ार आप का आराम भी गया आख़िर ये क्या बला है दिल-ए-बे-क़रार में इक ताज़ा वारदात है हर एक दम के साथ मेरे इरादे आ नहीं सकते शुमार में सौ मेहरबानियों के एवज़ मुस्कुरा दिया सरकार ने कमाल किया इख़्तिसार में होगा जब उन का क़हर क़यामत ही आएगी ज़िंदे रहेंगे घर में न मुर्दे मज़ार में कहते हैं लोग मौत से बद-तर है इंतिज़ार मेरी तमाम-उम्र कटी इंतिज़ार में निकलेगा अब के जो भी तिरा ऐ मुग़ाँ-नवाज़ फूलों में रख के देंगे तुझे हम बहार में नासेह भी चारागर भी ये दो दो अज़ाब क्यूँ मुनकिर-नकीर आते हैं वो भी मज़ार में खाई हुई क़सम तो ख़ुदा के लिए न खा अपनी तरफ़ से फ़र्क़ न डाल ए'तिबार में ज़ाहिद की तरह और हैं मस्जिद में सैकड़ों ये किस शुमार में है वहाँ किस क़तार में इश्क़ और आप वाह 'सफ़ी' वाह-वाह-वा ग़म और हाए ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र में